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रवि हमेशा से सपनों की दुनिया में जीता था। वह अपने छोटे से कमरे में बैठा, अपनी किताबों के ढेर के बीच खोया रहता। उसके पास बड़ी-बड़ी योजनाएँ थीं—कभी वह लेखक बनना चाहता था, तो कभी कोई अन्वेषक। लेकिन जीवन की वास्तविकताएँ उसे हर बार खींच कर वापस जमीन पर ला देतीं। उसकी नौकरी में उसे इतना समय नहीं मिल पाता था कि वह अपने सपनों को आकार दे सके। एक दिन, रवि के दादाजी, जिनका निधन कुछ महीने पहले हुआ था, के पुराने कमरे की सफाई करते समय उसे एक पुराना लकड़ी का शेल्फ मिला। शेल्फ बेहद साधारण था, कुछ तिरछा, धूल से ढका हुआ, और कई जगहों से थोड़ा-बहुत टूट चुका था। पर उस शेल्फ में कुछ खास था—उस पर दादाजी के पुराने किताबें और नोट्स रखे हुए थे। रवि ने वह शेल्फ अपने कमरे में लाकर साफ किया और उस पर अपने पसंदीदा किताबें रखने लगा। जैसे ही उसने पहली किताब रखी, उसे कुछ महसूस हुआ—एक गहरी भावनात्मक लहर जो सीधे उसके दिल तक पहुंच गई। यह वही शेल्फ था जिस पर उसके दादाजी ने अपने सपने संजोए थे। उनके हाथों के स्पर्श, उनकी मेहनत और उनके अधूरे सपनों की कहानियाँ उस शेल्फ पर जिंदा थीं।