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मी लॉर्ड! अभियुक्त मिस लीला बेणारे के ऊपर पाए गए अभियोग का स्वरूप महा भयंकर है। मी लॉर्ड! कठघरे में खड़ी हुई इस स्त्री ने स्वर्ग से भी अधिक पवित्र मातृत्व को अपने कुकर्मों से कलंकित किया है। उसे कोर्ट द्वारा दिया गया कठोर से कठोर दंड भी कम है। अभियुक्त का चरित्र अत्यन्त लज्जाजनक है। नैतिकता को तो उसने सरे बाजार नीलाम कर दिया है। अपने पतित आचरण से उसने सामाजिक और नैतिक मूल्यों का गला घोंट दिया है। अभियुक्त समाज की प्रबल शत्रु है। इस तरह की समाज घातक प्रवृत्तियों को अगर बढ़ावा मिलता रहा तो एक दिन यह देश और इसकी संस्कृति रसातल में चली जाएगी। इसीलिए मेरा कहना है कि भावनाओं में न बहकर कोर्ट अभियुक्त के गुनाहों पर कठोर कर्तव्य का स्मरण करने के बाद ही निर्णय ले । अभियुक्त पर आरोप भ्रूण-हत्या का है। किन्तु उसने उससे भी गम्भीर गुनाह किया है। वह है विवाह से पहले माँ बनने का। बगैर विवाह का मातृत्व हमारे धर्म और संस्कृति में महापाप माना गया है और फिर उस अवैध सन्तान को पाल-पोसकर बड़ा करने का अभियुक्त का संकल्प यदि सफल हो गया तो समाज का अस्तित्व ही खतरे में जाएगा। नैतिक मूल्यों का तो नामोनिशान मिट जाएगा। यह एक भयंकर आशंका है मी लॉर्ड । भ्रूण-हत्या अत्यन्त पतित कर्म है और उससे भी पतित कर्म किसी अवैध सन्तान को पाल-पोसकर बड़ा करना है। इससे बढ़ावा मिलने पर समाज में विवाह संस्था जैसी चीज ही मिट जाएगी, अनाचार और पापाचार का बोलबाला हो जाएगा। संस्कार युक्त समाज का जो हमारा सुन्दर स्वप्न है, वह देखते-देखते मिट्टी में मिल जाएगा। अपनी परम्परा, अपनी इज्जत, संस्कृति और यहाँ तक कि अपने धर्म की भी नींव में बारूद लगाकर उसे समूल नष्ट कर देने का इरादा इस अभियुक्त स्त्री से लगता है। इसलिए मैं कहता हूँ कि हममें हर समझदार, बुद्धिमान तथा विचारशील नागरिकों एवं न्याय देवता का यह पवित्र और आवश्यक कर्तव्य है कि उसे आकार लेने से पहले ही नष्ट कर दिया जाए। अभियुक्त स्त्री है यह सोचकर उस पर दया करने की जरूरत नहीं है, स्त्री पर तो समाज को बनाने का दायित्व और भी अधिक है। 'न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति' यह हमारी परम्परा का सर्वमान्य नियम है। इस नियम के अनुसार मैं दावे के साथ माँग करता हूँ कि न 'मिस बेणारे स्वातंत्र्यमर्हति।' अभियुक्त पर दया करके कोर्ट उसे कठोर-से-कठोर दंड दे। इस आग्रह के साथ मैं फरियादी पक्ष की बहस खत्म करता